
31 अगस्त से नंदा सिद्धपीठ कुरूड़ से शुरू हुई नंदा लोकजात यात्रा कैलाश की रवानगी के तहत रविवार को अपने निर्जन पड़ाव गैरोली पातल पहुंच गई हैं। शनिवार एवं आज सुबह से ही हजारों की तादाद में नंदा भक्तों का जमावड़ा अपनी लाडली ध्याणी कैलाश विदा करने के तहत वांण गांव में लगा हुआ था। सुबह से ही भक्तों के द्वारा देवी की पूजा-आराधना का सिलसिला शुरू हो गया था,जोकि साढ़े दस बजें तक जारी रहा। इसके बाद कई श्रद्धालुओं ने यही से अपनी लाडली को विदाई देते हुए वापसी कर ली। जबकि अधिकांश श्रद्वालु नंदा के डोले के साथ नाचने, गाते एवं नंदा व लाटू के जयकारों के करते हुए गांव के ऊपरी भाग में स्थित लाटू के मंदिर तक पहुंचें।
यहां पर भक्तों ने नंदा देवी के साथ ही लाटू देवता की पूजा-अर्चना कर मनौतियां मांगी। यहां से दोपहर करीब तीन बजे अधिकांश देवी भक्तों ने अपनी लाडली, कुलदेवी मां नंदा को कैलाश के लिए अश्रुपूरित विदाई दी। सैकड़ों की संख्या में महिलाएं एवं पुरुष जिनको वांण से ही लौट जाना पड़ा था तब तक लाटू मंदिर से देवी के डोले एवं यात्रा को निहारते रहे, जबतक की डोली पहाड़ी के उस पार तक नही चली गई।
यात्रा रणकाधार, वेतरणी नदी को पार कर देर सांय निर्जन पड़ाव गैरोली पातल पहुंच गई हैं। लोकजात के तहत सोमवार को वेदनी बुग्याल स्थित वेदनी कुंड में तर्पण, पिंड दान, एवं नंदा की जात विशेष पूजा में भाग लेने के लिए सैकड़ों की संख्या में देवी भक्तों का वेदनी बुग्याल के आसपास के निर्जन क्षेत्रों में जमावड़ा लग गया हैं। जहां सैकड़ों की संख्या में नंदा के पुजारी एवं भक्त गैरोली पातल में रूक हुए हैं। वही प्रकृति के अनमोल खजाने का दीदार करने के लिए भक्तों एवं प्रकृति प्रेमियों के द्वारा सुरक्षित स्थानों पर रंग-बिरंगे टेंट ओढ़ दिए जाने के कारण वेदनी का दृश्य काफी आकर्षक बन गया हैं। नंदा देवी की विदाई के समय गितारों (नंदा के विषय में गाये जाने वाले विशेष गानों) मदन सिंह सुरागी, देवेंद्र पंचोली,लाटू पूजारी खीम सिंह, हीरा पहाड़ी, हीरा देशी, धन सिंह, हीरा गढ़वाली, नंदुली देवी आदि के द्वारा गायें गए झोडों के दौरान पूरा जनसमुदाय भावूक हो उठा।इस अवसर पर कई महिलाओं की आंखें छलछला उठी।