
हिंदू धर्म की परंपराओं में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। इस वर्ष पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से हो रही है, जो 21 सितंबर 2025 तक चलेगा। यह 15 दिवसीय अवधि पूर्वजों की आत्मा की शांति और पारिवारिक कल्याण के लिए की जाने वाली धार्मिक गतिविधियों से भरी होती है।
देशभर के तीर्थ स्थलों, विशेषकर गया, वाराणसी, प्रयागराज और हरिद्वार में इस अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं।
🔱 श्रद्धा और तर्पण का महत्व
पंडितों के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान तर्पण और पिंडदान करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कई लोग इस दौरान गया श्राद्ध करने भी जाते हैं, जिसे सबसे उत्तम माना गया है।
तर्पण के लिए सबसे शुभ समय:
- कुतुप काल: 11:53 AM – 12:44 PM
- रौहिण मुहूर्त: 12:44 PM – 1:34 PM
- अपराह्न काल: 1:34 PM – 4:04 PM
🙏 अनुष्ठानों की विधि
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके, तांबे के लोटे में जल, दूध, काले तिल और जौ मिलाकर तर्पण करें।
- तीन बार जल अर्पण के साथ “ॐ पितृभ्यः नमः” और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का उच्चारण करें।
- ब्राह्मण भोजन, गाय, कुत्ते और कौवे को अन्न दान करना आवश्यक होता है।
⚠️ क्या न करें पितृ पक्ष में?
- इस काल में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
- लहसुन, प्याज, मांस-मदिरा का सेवन न करें।
- इस अवधि को पूर्ण श्रद्धा, नियम और संयम से बिताना चाहिए।
📣 धार्मिक स्थलों पर तैयारियां पूरी
वाराणसी, प्रयागराज और गया जैसे तीर्थों में प्रशासन ने पिंडदान के लिए विशेष व्यवस्थाएं की हैं। पुरोहित समाज का कहना है कि इस बार बड़ी संख्या में श्राद्ध कराने वाले परिवारों की बुकिंग पहले ही हो चुकी है