
उत्तराखंड में इस बार मॉनसून के दौरान आई आपदाओं ने राज्य को हिलाकर रख दिया है। जगह-जगह बादल फटने और भारी बारिश के कारण भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाएं हुईं, जिनमें भारी जन और संपत्ति का नुकसान हुआ। लेकिन अब यह भी सामने आया है कि प्राकृतिक आपदाओं के पीछे नदियों के प्रवाह में की गई मानवजनित हस्तक्षेपों का बड़ा हाथ है।
देहरादून के सहस्त्रधारा इलाके में एक रिजॉर्ट द्वारा नदी के प्राकृतिक बहाव को बदलने से बाढ़ के पानी का प्रवाह अन्यत्र मोड़ दिया गया था, जिससे क्षेत्र में भारी नुकसान हुआ। प्रशासन ने इस अवैध निर्माणकर्ता पर 7 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। यह घटना साफ तौर पर बताती है कि बिना अनुमति के नदी किनारे निर्माण कितनी बड़ी आपदा का कारण बन सकता है।
टिहरी-देहरादून सीमा के पास बांदल नदी के किनारे एक नया रिजॉर्ट निर्माणाधीन है, जिसके लिए नदी का बहाव बदल दिया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह इलाका भूस्खलन के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील है और इस तरह का निर्माण आने वाले समय में गंभीर आपदाओं को न्योता दे सकता है।
हालांकि, अब तक इस मामले में टिहरी और देहरादून प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया है, जिससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस निर्माण के लिए कोई पर्यावरणीय मंजूरी भी ली गई है।
भूगर्भ विशेषज्ञों का कहना है कि नदियों के प्रवाह में बदलाव और उनके किनारे निर्माण प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ने का काम करता है। इससे बाढ़, भूस्खलन और जमीन धंसने जैसी आपदाओं की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने सरकार से अपील की है कि संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण पर पूरी तरह रोक लगाई जाए और पहले की आपदाओं से सबक लेकर कड़े नियम लागू किए जाएं।
मौजूदा आपदाओं ने न केवल जनधन को प्रभावित किया है, बल्कि कई परिवारों को अपने गांव छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करना पड़ा है। यह सामाजिक संकट भी राज्य के विकास के लिए खतरा बनता जा रहा है।
आगे क्या किया जाना चाहिए?
- नदी क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का निर्माण केवल विशेषज्ञों की सहमति और पर्यावरण मंजूरी के बाद ही किया जाना चाहिए।
- प्रशासन को चाहिए कि अवैध अतिक्रमण के खिलाफ तुरंत और सख्त कार्रवाई करे।
- स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय रूप से शामिल किया जाए।
- भविष्य में आपदाओं को रोकने के लिए सतत निगरानी और वैज्ञानिक आधार पर नीति बनाई जाए।
उत्तराखंड का प्राकृतिक सौंदर्य और जैविक विविधता उसकी सबसे बड़ी पूंजी है। इसे सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है कि हम प्रकृति के नियमों का सम्मान करें और विकास को स्थायी बनाएं, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी यहां के खुशहाल वातावरण का आनंद उठा सकें।