
धार्मिक नगरी हरिद्वार में इस समय गंगा का प्रवाह थमा हुआ है, लेकिन घाटों पर जीवन की रफ्तार कुछ और ही कहानियां बुन रही है। हर साल की तरह इस बार भी 15 दिन की वार्षिक गंगा बंदी के दौरान गंगनहर की सफाई और मरम्मत का कार्य जारी है। मगर इस बंदी ने घाटों पर एक अलग ही दृश्य रच दिया है – जहां श्रद्धालुओं की जगह अब निआरिआ समुदाय के लोग गंगा के सूखे तल में ‘धन-दौलत’ की तलाश में जुटे हैं।
गुरुवार रात 11 बजे जैसे ही गंगा की धारा रोकी गई, घाटों पर चुंबक, कुदाल और जाल लेकर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। कोई सिक्के बटोर रहा है, कोई चांदी के गहने खोज रहा है, तो किसी को रेत के नीचे से गैस सिलिंडर और पुराना फ्रीज तक मिल रहा है।
हरिद्वार में प्रचलित एक कहावत है – “बहती गंगा कृपा बरसाती हैं, ठहरीं तो देती हैं धन-दौलत।” यह कहावत इस समय पूरी तरह सजीव प्रतीत होती है। घाटों पर दिन-रात खजाने की खोज जारी है। परिवार दर परिवार रेत में भविष्य की तलाश में लगे हैं।
जीवा, जो मेला क्षेत्र में टेंट लगाकर रहता है, को खुदाई में एक पुराना गैस सिलिंडर मिला। उसने बताया, “चुंबक से संकेत मिला, तो खुदाई शुरू की और सिलिंडर निकल आया। ये मां गंगा का वरदान है।”
वहीं संजय को एक जंग लगा फ्रीज मिला। हालांकि उसे उम्मीद कुछ और थी, लेकिन वह भी इस मौके को एक अवसर मानता है।
निआरिआ समाज, जो आम दिनों में हरकी पैड़ी और अन्य घाटों पर फूल, प्रसाद और पूजा सामग्री बेचता है, इन 15 दिनों को साल का सबसे खास वक्त मानता है। छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएं और बुज़ुर्ग – सभी घाटों की रेत में अपना नसीब खोज रहे हैं।
रमावति देवी, जो वर्षों से इस परंपरा में भाग ले रही हैं, बताती हैं, “पहले बहुत कुछ मिलता था, अब कम हो गया है। लेकिन जो भी मिले, मां गंगा का आशीर्वाद मानते हैं।”
स्थानीय लोगों का मानना है कि गंगा के तल में मिलने वाला बहुत-सा सामान बीते वर्षों में उत्तराखंड और आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में आई बाढ़ के दौरान बहकर आया है। यह सिर्फ खजाना नहीं, उन आपदाओं की चुप गवाही भी है जिनमें कई लोगों ने अपने घर और जीवन की पूंजी खो दी।
गंगा बंदी केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन चुकी है। श्रद्धालु जहां बहती गंगा में पुण्य की डुबकी लगाते हैं, वहीं ठहरी गंगा कई गरीब परिवारों के लिए जीवन की नई राह बन जाती है।