
शिमला, 13 अक्टूबर:
हिमाचल प्रदेश में मौसम का चक्र अब तेजी से बदलता नजर आ रहा है। जहां पहले बर्फबारी दिसंबर-जनवरी में शुरू होती थी, वहीं इस बार अक्तूबर के पहले सप्ताह में ही कई जिलों में बर्फ गिर चुकी है। लाहौल-स्पीति, किन्नौर, कुल्लू और चंबा के ऊपरी इलाकों में ताजा हिमपात हुआ है, जिससे तापमान शून्य से नीचे चला गया है।
मौसम विज्ञान केंद्र शिमला के अनुसार, 4 से 7 अक्तूबर के बीच सक्रिय रहे पश्चिमी विक्षोभ और मानसून के बाद वातावरण में बची अधिक नमी इस असामयिक बर्फबारी की मुख्य वजह बने। इस बार अरब सागर से आई अतिरिक्त नमी ने पश्चिमी विक्षोभ को और मजबूत कर दिया, जिससे बर्फबारी अपेक्षाकृत कम ऊंचाई तक देखने को मिली।
हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष मानसून के दौरान 42% अधिक वर्षा दर्ज की गई। मौसम विभाग के अनुसार, वर्ष 1995 के बाद यह सबसे भीगता मानसून रहा। बारिश के साथ-साथ इस दौरान 50 बादल फटने की घटनाएं, 98 बार बाढ़, और 148 भूस्खलन की घटनाएं भी हुईं।
स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि अब मौसम वैसा नहीं रहा जैसा पहले था। 90 वर्षीय सोनम और 85 वर्षीय फुंचोग बताते हैं कि पहले दिसंबर में बर्फ गिरती थी और मई तक जमा रहती थी, लेकिन अब अक्टूबर में ही बर्फ पड़ रही है और सेब के पेड़ों पर फल भी लगे हैं।
जिला कृषि अधिकारी डॉ. मुंशी राम ठाकुर के अनुसार, बर्फबारी का यह बदला हुआ समय हिमनदों, खेती और बागवानी के लिए चिंताजनक है। उनका कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण वायुमंडल में नमी बढ़ रही है, जिससे भारी बारिश और असमय बर्फबारी जैसी घटनाएं हो रही हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि हिमाचल में अब पारंपरिक मौसम चक्र टूट चुका है। गर्मियों में अधिक बारिश, बाढ़ और भूस्खलन, और सर्दियों की शुरुआत से पहले ही बर्फबारी — यह सब जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट संकेत हैं। आने वाले वर्षों में इन घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता और बढ़ सकती है
हिमाचल प्रदेश अब जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का जीवंत उदाहरण बनता जा रहा है। असमय बर्फबारी, रिकॉर्ड वर्षा और बदलता तापमान आने वाले समय में राज्य की आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है।