भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में रविवार को आम चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान कराया गया। सेना के सत्ता पर कब्ज़ा करने के लगभग पांच साल बाद हो रहे इन चुनावों को सैन्य शासन बहुदलीय लोकतंत्र की वापसी के तौर पर पेश कर रहा है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे अलग दिखाई देती है। राजनीतिक विश्लेषकों और मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि इन चुनावों से सत्ता का वास्तविक संतुलन बदलने की संभावना बेहद कम है।
2021 में सेना ने आंग सान सू की की निर्वाचित सरकार को हटाकर सत्ता अपने हाथ में ले ली थी। इसके बाद शुरू हुआ जनआंदोलन समय के साथ गृहयुद्ध में बदल गया। आज देश के कई हिस्सों में सेना और जातीय सशस्त्र समूहों के बीच संघर्ष जारी है, जिसका सीधा असर चुनाव प्रक्रिया पर भी पड़ रहा है।
चुनाव तीन चरणों में कराए जा रहे हैं। पहले चरण में 330 कस्बों में से 102 में मतदान हुआ। अगले चरण 11 जनवरी और 25 जनवरी को होंगे। हालांकि, सुरक्षा हालात खराब होने के कारण 65 कस्बों में मतदान संभव नहीं हो सका है। विपक्ष का कहना है कि बड़े पैमाने पर क्षेत्रों को मतदान से बाहर रखना ही चुनाव की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है।
म्यांमार की प्रमुख लोकतांत्रिक ताकत नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) इस चुनाव में शामिल नहीं है। पार्टी की नेता और नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की 27 साल की जेल की सजा काट रही हैं। नए सैन्य नियमों के तहत एनएलडी को पंजीकरण से वंचित कर दिया गया, जिसके बाद पार्टी को भंग कर दिया गया। कई अन्य दलों ने भी बहिष्कार का रास्ता चुना है।
विशेषज्ञों के अनुसार, सेना समर्थित यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी को चुनाव में बढ़त दिलाने की पूरी तैयारी है। माना जा रहा है कि चुनावों के बाद सेना प्रमुख जनरल मिन आंग ह्लाइंग एक बार फिर देश की सत्ता की कमान संभाल सकते हैं। इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप का कहना है कि सेना इन चुनावों के ज़रिये आसियान और पड़ोसी देशों को यह संदेश देना चाहती है कि म्यांमार लोकतांत्रिक प्रक्रिया की ओर लौट रहा है।
इस बीच, कठोर चुनाव कानूनों ने राजनीतिक अभिव्यक्ति की गुंजाइश और सीमित कर दी है। चुनावों की आलोचना करना भी अपराध माना जा रहा है। हाल के महीनों में सैकड़ों लोगों को पर्चे बांटने या सोशल मीडिया गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने चेताया है कि चुनाव से पहले हिंसा और दमन में तेज़ी आई है। आंकड़ों के मुताबिक, तख्तापलट के बाद से हजारों नागरिकों की जान जा चुकी है और लाखों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव के बाद हालात और बिगड़ सकते हैं, क्योंकि विरोधी गुट सेना के दावों को चुनौती देने की तैयारी में हैं।
कुल मिलाकर, म्यांमार में हो रहे चुनाव लोकतंत्र की वापसी से ज्यादा सत्ता को वैध ठहराने की कवायद नजर आ रहे हैं।
