
पहले दिसंबर, फिर अप्रैल, जुलाई, अगस्त और अब आगे कार्यवाही जारी है। ये वे महीने हैं, जिन्हें पहले सरकारी डिग्री कालेजों में वाई-फाई सुविधा मुहैया कराने के लिए तय किया गया। विषम भौगोलिक परिस्थितियां और शासन स्तर पर तैयारी और फैसले लेने में फाइलों का पेच। ऐसे में मंजिल पर पहुंचने की तारीखें बदल-बदलकर काम चलाना पड़ रहा है। कोरोना संकट काल में आनलाइन पढ़ाई मजबूरी बन गई। आनलाइन पढ़ाई में भी इंटरनेट कनेक्टिविटी की दिक्कत है। इसे दूर करने के लिए कालेजों को जल्द वाई-फाई सुविधा से जोड़ने में उच्च शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत खासी दिलचस्पी ले रहे हैं। शासन के अधिकारियों और वाई-फाई सुविधा के लिए उच्च शिक्षा और सूचना प्रौद्योगिकी विकास अभिकरण को बार-बार टास्क थमाया जा रहा है। इस बीच दो दफा अभिकरण के निदेशक बदले जा चुके हैं। थक-हारकर अब जल्द फैसले को शासन स्तर पर ही समिति गठित कर दी गई है।
जो काम लंबा आंदोलन नहीं कर सका, उसे पोस्टर ने कर दिखाया। राज्य के सरकारी मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस और बीडीएस के छात्रों को इंटर्नशिप स्टाइपेंड के रूप में 2011 से महज 7500 रुपये प्रतिमाह मिल रहे थे। प्रशिक्षु डाक्टरों को कम स्टाइपेंड की राशि बढ़ाने के लिए आंदोलन का सहारा भी लेना पड़ा। सरकार मानी और कहा कि बढ़ा स्टाइपेंड दिया जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की हिदायत के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग ने आनन-फानन में आदेश जारी करने की कसरत तेज कर दी। इधर विभाग का आदेश जारी होने से पहले ही सरकार के पोस्टर तन गए। पोस्टर में बढ़ाई गई प्रतिमाह 17 हजार रुपये की राशि के सम्मानजनक होने का उल्लेख किया गया। शासनादेश जारी हुआ तो स्टाइपेंड की राशि मात्र 15,120 रुपये दर्शाई गई। पोस्टर कुछ और आदेश कुछ, इंटरनेट मीडिया पर मामला तूल पकड़ गया। अब सम्मान बरकरार रखने की बात कही जा रही है।
नौकरशाही के पत्ते अपने ही अंदाज में फेंट चुके मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी फाइलों का मूवमेंट और जन कल्याण के फैसलों को सार्वजनिक करने की हिदायत दे चुके हैं। युवा मुख्यमंत्री नीतिगत फैसलों में देरी नहीं लगा रहे। धामी की सक्रियता से उच्च शिक्षा विभाग हरकत में आने को मजबूर हो गया। ऊधमसिंह नगर जिले के छात्र-छात्राओं के साथ संवाद के दौरान मुख्यमंत्री ने बता दिया कि सेना की तीनों विंग यानी थल, नौसेना और वायु सेना के साथ ही प्रशासनिक आफिसर बनने की ललक रखने वाले युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए सरकार 50 हजार रुपये की आर्थिक मदद दे रही है। यह निर्णय किया जा चुका है। मुख्यमंत्री के श्रीमुख से जैसे ही ये जानकारी सामने आई, उच्च शिक्षा विभाग को भी अपना आदेश याद आ गया। तुरंत आदेश निकाला और नुमायां कर दिया। मुख्यमंत्री आगे-आगे हैं, वहीं विभाग आदेश के साथ पीछे-पीछे दौड़ रहे हैं।
प्रदेश में अपने-आप में अनूठा है आयुर्वेद विश्वविद्यालय। स्थापना के बाद से विश्वविद्यालय में कुलसचिव, कुलपति की नियुक्ति से लेकर खरीद में गड़बड़ी, नियमों को ताक पर रखने का जो सिलसिला चला, फिर किसी भी सरकार के कार्यकाल में रोके नहीं रुका। हाल ही में विश्वविद्यालय में नियुक्तियों और अन्य अनियमितता के मामले सामने आए। शासन ने नियुक्ति से मना किया तो मौजूदा कुलपति ने इसे अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप बताते हुए इस पर अमल करने से मना कर दिया। शासन ने एक बार फिर जांच बैठाते हुए 13 बिंदुओं पर विश्वविद्यालय से रिपोर्ट तलब की है। इस बीच आयुष व आयुष शिक्षा मंत्री डा हरक सिंह रावत नए फार्मूले के साथ आगे आए। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का नाम बदला जाएगा, ताकि विवादों का साया हट जाए। नामकरण के लिए उन्होंने महर्षि चरक का नाम सुझाया है। मंत्रीजी के फार्मूले पर शासन के अधिकारी अभी सिर खुजा रहे हैं।