बसंतर की लड़ाई:
बसंतर का युद्ध 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की सबसे भीषण टैंक लड़ाइयों में गिना जाता है। इस युद्ध में सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने अदम्य साहस और बलिदान से युद्ध का रुख बदल दिया। भारतीय सेना की बहादुरी के कारण 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेक दिए थे।
परिवार और प्रारंभिक जीवन:
अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ। उनका परिवार मूलतः पाकिस्तान के सरगोधा से था। परिवार की कई पीढ़ियां सेना से जुड़ी हुई थीं – उनके परदादा सिख खालसा सेना में थे, दादा ने प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया और पिता ब्रिगेडियर एम.एल. खेत्रपाल ने द्वितीय विश्व युद्ध और 1965 की लड़ाई में सेवा दी।
सेना की ओर झुकाव:
बचपन में अरुण खेत्रपाल मेधावी छात्र थे। पिता चाहते थे कि वे आईआईटी से इंजीनियरिंग करें, लेकिन अरुण का सपना सेना में जाने का था। उन्होंने लॉरेंस स्कूल, सनावर से पढ़ाई की और नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) में दाखिला लिया। 13 जून 1971 को उन्होंने पूना हॉर्स रेजिमेंट में कमांड संभाला।
युद्ध में भागीदारी:
सेकेंड लेफ्टिनेंट बनने के महज छह महीने बाद, 3 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हुआ। अरुण खेत्रपाल शकरगढ़ सेक्टर, बसंतर नदी के पास मोर्चा संभालने पहुंचे। यह इलाका नदियों, नालों और बारूदी सुरंगों से भरा हुआ था और टैंकों के लिए अत्यंत खतरनाक था।
16 दिसंबर 1971 की भीषण लड़ाई:
भारतीय इंजीनियरिंग यूनिट ने माइनफील्ड में सुरक्षित मार्ग बनाया। इसके बाद भारतीय बख्तरबंद टुकड़ियां आगे बढ़ीं। पाकिस्तानी सेना के अमेरिकी पैटन टैंकों ने काउंटर अटैक किया। अरुण खेत्रपाल ने अपने सेन्चुरियन टैंक से दुश्मन की डिफेंस लाइन ध्वस्त की और कई पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाया।
अदम्य साहस और शहादत:
कमांडर के पीछे हटने के आदेश के बावजूद अरुण खेत्रपाल ने कहा:
“नो सर, आई हैव शॉट डाउन फोर. आई एम गोइंग फॉर मोर.”
(सर, मेरी गन अभी फायर कर रही है, जब तक करेगी मैं फायर करता रहूंगा)।
उन्होंने कई पाकिस्तानी टैंक नष्ट किए, लेकिन अंततः उनका टैंक गोलाबारी में आग पकड़ गया और वे शहीद हो गए।
अरुण खेत्रपाल की वीरता और बलिदान के कारण बैटल ऑफ बसंतर में भारतीय सेना ने जीत सुनिश्चित की। उनकी वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
अरुण खेत्रपाल की कहानी भारतीय जवानों के साहस, समर्पण और मातृभूमि के प्रति निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है। उनकी वीरता आज भी भारतीय सेना और देशवासियों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
