पटना, 20 नवंबर 2025:
बिहार की राजनीति एक बार फिर उसी चेहरे पर ठहर गई है, जिसे कभी “सुशासन का प्रतीक”, कभी “राजनीति का चतुर खिलाड़ी” और कभी “बिहार का स्थायी मुख्यमंत्री” कहा जाता रहा है। हाँ—नीतीश कुमार।
एनडीए ने नई जीत के बाद बिना किसी संशय के उन्हें अपना नेता चुन लिया, और अब वह दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं।
गांधी मैदान आज सिर्फ एक मैदान नहीं, बल्कि एक इतिहास का मंच है—जहाँ नीतीश की सत्ता यात्रा बार-बार अपने कदम दोहराती रही है। आज वह चौथी बार यहीं से शपथ लेंगे।
गांधी मैदान के बाहर भारी सुरक्षा, भीतर मंच पर चमकती रोशनियाँ, और VIP गैलरी में देश की बड़ी हस्तियों की उपस्थिति—पूरा पटना आज एक उत्सव की तरह सजा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक, सभी की मौजूदगी इस बात का संकेत दे रही है कि यह सिर्फ एक शपथ ग्रहण नहीं—यह राजनीतिक स्थिरता और गठबंधन की ताकत का प्रदर्शन भी है।
बिहार के नालंदा के एक छोटे-से गांव से निकलकर बिजली बोर्ड की नौकरी करने वाला एक युवा शायद ही कभी सोच पाया होगा कि वह बिहार के इतिहास का सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाला नेता बन जाएगा।
लेकिन जेपी आंदोलन ने नीतीश को सिर्फ राजनीति नहीं सिखाई—उसने उनकी दिशा बदल दी।
हार से शुरुआत करने वाला यह नेता धीरे-धीरे बिहार की राजनीति का सबसे विश्वसनीय चेहरा बन गया।
2024–25 की राजनीति में कई लोग मान चुके थे कि अब नीतीश का करियर ढलान पर है।
हालाँकि, नीतीश को जानने वाले जानते हैं कि वह तब तक मैदान नहीं छोड़ते जब तक “आखिरी गेंद पर चौका” न मार दें।
इस बार भी ऐसा ही हुआ। एनडीए ने दमदार प्रदर्शन किया और जदयू ने अप्रत्याशित मजबूती दिखाई।
इस जीत ने साबित कर दिया—राजनीतिक तापमान चाहे जैसा रहे, नीतीश की रणनीति अभी भी प्रासंगिक है।
नीतीश कुमार के राजनीतिक कैलेंडर में एक महीना बार-बार आता है—नवंबर।
यह सिर्फ तारीखें नहीं, बल्कि नीतीश के करियर के महत्वपूर्ण पड़ाव हैं:
- 2005 — 24 नवंबर: दूसरी बार मुख्यमंत्री
- 2010 — 26 नवंबर: तीसरी बार
- 2015 — 20 नवंबर: महागठबंधन के साथ सत्ता में वापसी
- 2020 — 16 नवंबर: सातवीं बार शपथ
- 2025 — 20 नवंबर: दसवीं बार मुख्यमंत्री
अगर राजनीति में कोई महीना लकी कहा जाए, तो नीतीश के लिए वह नवंबर ही है।
जब नीतीश कुमार आज शपथ लेंगे, तो राजनीति के जानकारों के बीच एक ही चर्चा है—यह पारी उनकी आखिरी पारी है या एक और मजबूती से शुरू हुआ अध्याय?
फिलहाल, बिहार के इतिहास में यह दिन दर्ज हो रहा है।
एक बार फिर वही नेता, वही गांधी मैदान, वही कुर्सी—लेकिन बदलते हुए राजनीतिक समीकरणों के बीच।
