
In this aerial view, Palestinians check the devastation in the yard of a destroyed school, a day after it was hit by an Israeli strike, in the al-Tuffah neighbourhood of Gaza City on April 4, 2025. Gaza's civil defence agency said on April 3 that at least 31 people, including children, were killed in the Israeli strike on the school serving as a shelter for Palestinians displaced by the war. (Photo by Omar AL-QATTAA / AFP)
मध्य पूर्व में शांति की उम्मीदों को उस समय झटका लगा जब हमास की सैन्य शाखा के प्रमुख इज्ज अल-दीन अल-हद्दाद ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 20 सूत्रीय युद्धविराम योजना को पूरी तरह खारिज कर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश की गारंटी नहीं दी जाती, तब तक हमास किसी भी सूरत में हथियार नहीं डालेगा।
ट्रंप ने इजरायल-हमास संघर्ष को समाप्त करने के लिए प्रस्ताव रखा था, जिसमें युद्धविराम, बंधकों की रिहाई, हमास के निरस्त्रीकरण और गाज़ा में अंतरराष्ट्रीय प्रशासन की व्यवस्था जैसी मांगें शामिल थीं। इसके साथ ही उन्होंने हमास को रविवार शाम तक का समय देते हुए चेतावनी दी थी कि प्रस्ताव अस्वीकार करने पर “अंजाम बेहद दुखद होगा।”
हमास के राजनीतिक नेतृत्व ने शुरू में इस प्रस्ताव के कुछ हिस्सों पर सैद्धांतिक सहमति दी थी, लेकिन अब गाज़ा में कमान संभाल रहे अल-हद्दाद ने इसे “हमास के आत्मसमर्पण की चाल” बताते हुए खारिज कर दिया है। उन्होंने कतर में मौजूद हमास के वार्ताकारों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे वार्ता से हट जाएं और इजरायल के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष जारी रखें।
गौरतलब है कि अल-हद्दाद को हाल ही में मारे गए याह्या सिनवार की जगह गाज़ा में सैन्य कमांडर नियुक्त किया गया है। वह इस समय न सिर्फ हमास की सामरिक नीति बल्कि 48 बंधकों की स्थिति पर भी नियंत्रण रखते हैं, जिनमें से लगभग 20 के जीवित होने की उम्मीद है।
इस घटनाक्रम के बाद इजरायल ने गाज़ा में सैन्य दबाव और बढ़ा दिया है। नेतन्याहू सरकार ने घोषणा की है कि गाज़ा सिटी में जो भी रहेगा, उसे आतंकी माना जाएगा। इससे वहां के नागरिकों के लिए खतरा और अधिक बढ़ गया है।
दूसरी ओर, ट्रंप की इस योजना को लेकर अमेरिका, तुर्किए, दक्षिण अफ्रीका और यूरोप के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि यह योजना “अमेरिका-इजरायल केंद्रित” है और इसमें फिलिस्तीनी पक्ष की आवाज को पूरी तरह नजरअंदाज़ किया गया है।
अब सबकी निगाहें रविवार को प्रस्ताव की डेडलाइन पर टिकी हैं। क्या यह संघर्ष और व्यापक बनेगा या किसी नए कूटनीतिक मोड़ की शुरुआत होगी — यह आने वाले 24 घंटे तय करेंगे।