
हरीश रावत के इंटरनेट मीडिया पोस्ट के बाद उत्तराखंड कांग्रेस में उठे भूचाल को शांत करने के लिए मुख्यालय ने वरिष्ठ नेताओं ने को दिल्ली तलब किया है। जिसके बाद विपक्ष कांग्रेस पर लगातार हमले कर रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस में कई तरह के गिरोह और गुट चल रहे हैं। कांग्रेसी खुद नहीं तय की पा रहे हैं कि उनका नेता कौन है। वहीं उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के शीर्ष नेता काशी सिंह ऐरी ने कहा कि अगर पूर्व सीएम हरीश रावत कांग्रेस छोड़ते हैं तो उनका उक्रांद में स्वागत किया जाएगा। पहाड़ के विकास के लिए उनको भी पार्टी में शामिल किया जाएगा। बता दें कि उत्तराखंड क्रांति दल का पिछले विधानसभा चुनाव में एक भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका था।
उत्तराखंड क्रांति दल उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की अवधारणा के साथ अस्तित्व में आया था। राज्य आंदोलन में यूकेडी की खासी महती भूमिका रही। यही कारण रहा कि राज्य गठन के बाद उत्तराखंड क्रांति दल मजबूत राजनीतिक दल के रूप में जनता के बीच खड़ा था। इसका असर पहले विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। वर्ष 2002 में उक्रांद ने गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल के रूप में चुनाव लड़ा। दल ने इस चुनाव में 62 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। जनता ने उक्रांद को पूरा सहयोग दिया। दल को कुल 5.49 प्रतिशत वोट के साथ ही चार सीटों पर जीत भी हासिल हुई। इसी वोट प्रतिशत के आधार पर उक्रांद को राज्य स्तरीय राजनैतिक दल के रूप में मान्यता मिली और वह प्रदेश का पहला क्षेत्रीय राजनैतिक दल बन गया।
वर्ष 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में उक्रांद का मत प्रतिशत यथावत, यानी 5.49 प्रतिशत रहा, लेकिन दल को केवल तीन ही सीट पर जीत मिली। उक्रांद चुनाव के बाद भाजपा को समर्थन देकर सरकार में शामिल हो गया। उसके दो विधायक मंत्री बने। इसे उक्रांद के लिए एक बड़े अवसर के रूप में देखा गया। अफसोस यह कि उक्रांद सत्ता से मिली ताकत को नहीं संभाल पाया। दल मजबूत होने के बजाय आपसी कलह के कारण कमजोर हुआ और कई धड़ों में बंट गया। इससे दल का चुनाव चिह्न भी छिन गया। वर्ष 2012 के तीसरे विधानसभा चुनाव में उक्रांद ने 44 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, लेकिन दल को केवल एक सीट मिली। उसका वोट प्रतिशत भी घटकर 1.93 रह गया। इस बार उसके एकमात्र विधायक ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया और मंत्री पद हासिल किया। 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव में जनता ने उक्रांद के सत्ता के पीछे दौडऩे के चरित्र को देखते हुए उससे पूरी तरह कन्नी काट ली। राज्य में पार्टी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई। सत्ता से बाहर होने के बाद उक्रांद के नेताओं को एक बार फिर दल की याद आई। अब दल के तकरीबन सभी गुट एक हो गए हैं। ऐसे में अब वे पूरी ताकत के साथ एक बार फिर क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर चुनाव में उतरने की तैयारी में जुटे हुए हैं।