
जब बादल फटे, ज़मीन खिसकी और पानी ने रफ्तार थाम दी, तब पहाड़ों में सिर्फ एक चीज़ चलती रही — सरकार की तत्परता और जनता के प्रति ज़िम्मेदारी। उत्तराखंड ने बीते चार महीनों में आपदा की कई भयावह घटनाओं का सामना किया, लेकिन हर बार एक बात समान रही — संकट के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में खड़ा होता शासन तंत्र।
धराली की रात हो या देहरादून की पहाड़ियों पर गिरे पहाड़, इस बार न तो प्रशासन थमा, न ही लोग अकेले पड़े। स्थानीय प्रशासन, आपदा राहत बल, सेना और चिकित्सा टीमें हर उस जगह पहुंचीं जहाँ मदद की ज़रूरत थी। और इस पूरे प्रयास के केंद्र में था एक मॉडल — ‘धामी मॉडल’ — जो आज न केवल उत्तराखंड की पहचान बनता जा रहा है, बल्कि देशभर में चर्चा का विषय भी है।
धराली में आई तबाही के बाद कुछ ही घंटों में राहत शिविर तैयार हुए, हेलीकॉप्टर से रसद पहुंची, और मुख्यमंत्री स्वयं स्थल पर पहुंचे। न फोटो खिंचवाने, न भाषण देने — बल्कि स्थिति की समीक्षा करने, पीड़ितों को सुनने और ज़मीन पर फैसले लेने। यही वो फर्क था, जो लोगों को 2013 की यादों से बाहर लाने में सफल रहा।
सरकार ने प्रभावितों के लिए ₹5 लाख तक की तत्काल आर्थिक सहायता घोषित की, और चेक वितरण में भी बेहद तेज़ी और पारदर्शिता बरती गई। पुनर्वास को लेकर भी योजनाएं सिर्फ कागज़ों तक नहीं रहीं, बल्कि ज़मीनी अमल में उतारी गईं।
‘धामी मॉडल’ की सबसे बड़ी ताकत रही आपदा से पहले की तैयारी। राज्य सरकार ने मौसम विभाग, जल आयोग और आपदा प्रबंधन विभाग के बीच लगातार समन्वय बनाकर जोखिम वाले क्षेत्रों में समय रहते चेतावनी और अलर्ट जारी किए। SDRF, NDRF, सेना और स्वास्थ्य सेवाएं पहले से स्टैंडबाय मोड में थीं — जिससे प्रतिक्रिया में कोई देरी नहीं हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड सरकार की तत्परता को देखते हुए ₹1,200 करोड़ के विशेष राहत पैकेज की घोषणा की, जिसमें सड़कें, बिजली आपूर्ति, पुनर्वास और मृतक परिवारों के लिए सहायता शामिल रही। यह समर्थन केवल आर्थिक नहीं, बल्कि राज्य के प्रयासों पर केंद्र का भरोसा भी दर्शाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरों तक, लोगों में इस बात को लेकर स्पष्ट राय है — “पहली बार ऐसा हुआ कि सरकार पहले से मौजूद थी।” एक स्थानीय ग्रामीण ने कहा, “पिछली बार हम इंतज़ार करते रह गए थे, इस बार सरकार पहले से हमारे बीच थी।”