
520 करोड़ रुपये के घाटे में चल रहे परिवहन निगम के 600 कार्मिकों की नौकरी खतरे में है। सरकार के आदेश पर घाटे से उबरने के लिए निगम ने जो कार्य योजना बनाई है, उसमें अक्षम एवं दागी कार्मिकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति की तैयारी चल रही। इनमें करीब 400 चालक और परिचालक ऐसे हैं, जो अक्षम होने का हलफनामा देकर बस संचालन के कार्य के बदले दफ्तरों में डटे हैं और बाकी भ्रष्टाचार में संलिप्त बताए जा रहे हैं। ये सभी 50 साल से अधिक उम्र के हैं। इन्हें सेवा के शेष वर्षों के आधार पर सरकार की ओर से तय रकम देकर सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा।आज (बुधवार) सचिवालय में अपर मुख्य सचिव एवं परिवहन निगम निदेशक मंडल की अध्यक्ष राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में होने वाली बोर्ड बैठक में इस पर फैसला लिया जाएगा। निगम प्रबंधन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के छह वर्ष पहले दिए गए उस फैसले को आधार बनाया, जिसमें बस बस सेवा को आवश्यक सेवा की श्रेणी का दर्जा देते हुए उत्तर प्रदेश परिवहन निगम को अक्षम चालक-परिचालकों को स्थायी रूप से सेवा से मुक्त करने का आदेश दिया था।
इसके बाद उत्तराखंड सरकार की ओर से भी सार्वजनिक आदेश जारी किए गए थे कि जो कार्मिक 50 साल से ऊपर हैं और दक्ष नहीं हैं, उनकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति कर दी जाए।उत्तराखंड परिवहन निगम में लगभग साढ़े छह हजार कार्मिक हैं। इनमें 2900 नियमित, जबकि बाकी संविदा व विशेष श्रेणी के हैं। हर माह वेतन पर निगम के 20 करोड़ रुपये खर्च करता है। अधिकारियों के मुताबिक, कार्यालय में बैठे ज्यादातर अक्षम और दागी कर्मचारी केवल नेतागिरी कर रहे, जबकि निगम को आउटसोर्सिंग व संविदा के कर्मचारियों से बस संचालन करा रहा। निगम महाप्रबंधक दीपक जैन ने बताया कि सरकार के आदेश पर कार्य योजना बनाई गई है, जिसमें अहम प्रस्ताव रखे गए हैं। बोर्ड बैठक में चर्चा कर इन पर निर्णय लिया जाएगा।