
टीनएज में बच्चे अक्सर गलत दोस्तों की संगत में पड़ जाते हैं। इन दोस्तों के साथ रहने की वजह से वे न केवल सिर्फ पढ़ाई-लिखाई से दूरी बनाने लगते हैं, बल्कि बुरी आदतें भी सीखने लगते हैं। सीधे मना करने पर ज्यादातर बच्चे इस उम्र में सुनते नहीं हैं, फिर कौन सा तरीका अपनाएं, जिससे बच्चा सही रास्ते पर चल सके। पैरेंट्स की, इस समस्या को हल करने के लिए हम एनएलपी प्रैक्टिशनर अवनी द्वारा बताए गए 5 असरदार टिप्स लेकर आए हैं,
गलत दोस्तों से दूर हाेगा-
बच्चा तभी अपने गलत दोस्तों से दूर होगा जब वह अपने भविष्य के बारे में सोचना शुरू करेगा। ऐसे में उसके लिए पैरेंट्स एक काम कर सकते हैं, जैसे वे बच्चे के कमरे में एक पोस्टर लगाएं, जिस पर लिखा हो, ‘मैं बड़ा होकर क्या बनना चाहता हूं’। उस पोस्टर पर हर हफ्ते एक नया सकारात्मक विचार लिखवाएं।
शांति से बिठकार बच्चे से करें बात-
बच्चों से शांति से बैठकर आराम से पूछें कि क्या उनके दोस्त उन्हें बेहतर इंसान बना रहे हैं या झूठा बना रहे हैं। यह भी पूछें कि उनके साथ रहने से उन्हें कॉन्फिडेंट फील होता है या डर लगता है। इस तरह के सवाल बच्चे के दिमाग को अपने दोस्तों के बारे में सोचने और समझने के लिए एक्टीवेट करते हैं।
दोस्ती से जुड़ी कोई फिल्म दिखाएं-
बच्चों को कोई ऐसी फिल्म दिखाएं या कहानी सुनाएं, जिसमें गलत दोस्तों की वजह से बच्चा मुश्किल में पड़ जाता है और एक समझदार दोस्त उसकी मदद करता है। ऐसी कहानी सीधे बच्चे के दिल तक पहुंचती है। फिर उससे पूछिए, ‘अगर तुम उसकी जगह होते तो तुम क्या करते?’
बच्चों को दें दूसरे ग्रुप का रिप्लेसमेंट-
बच्चों के दोस्तों की तुलना न करें, बल्कि उन्हें रिप्लेसमेंट दीजिए। बच्चे को किसी नए ग्रुप में शामिल कराएं, जैसे- खेलकूद, म्यूजिक, ड्राइंग या किसी कजिन के साथ घुलना-मिलना, जहां उसे अपनी नई पहचान मिले। जब वह नए लोगों के साथ “कूल” महसूस करेगा, तो धीरे-धीरे वह अपने पुराने ग्रुप से भावनात्मक दूरी बनाना शुरू कर देगा।
फैसला लेने का है अधिकार-
बच्चे के साथ रोजाना कम से कम 10 मिनट बिना फोन के, शांति से बैठें। उसे धीरे-धीरे यह बताएं कि आप उसे रोकना नहीं चाहतीं, बल्कि सिर्फ यह महसूस कराना चाहती हैं कि आप उसकी भलाई चाहते हैं। साथ ही कहें कि सही फैसला करने का अधिकार तो उसके पास ही है।