
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम आदेश में चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के दौरान मतदाताओं के पहचान प्रमाण के रूप में आधार कार्ड को 12वें वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन पहचान स्थापित करने का वैध दस्तावेज जरूर है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने चुनाव आयोग से कहा कि वह बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) को इस संबंध में निर्देश जारी करे, ताकि वे आधार को नामांकन के लिए पहचान पत्र के रूप में मान्यता दें। अदालत ने यह भी कहा कि BLO को आधार की सत्यता की जांच करने का अधिकार होगा, परंतु वे इसे मात्र इस आधार पर खारिज नहीं कर सकते कि यह नागरिकता साबित नहीं करता।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 23(4) के अनुसार, आधार को पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया है। अदालत ने आयोग से यह भी कहा कि वह मीडिया के माध्यम से लोगों को यह जानकारी दे कि आधार पहचान पत्र के रूप में मान्य है, इस पर चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत को बताया कि आयोग आधार को पहचान प्रमाण के रूप में मान्यता देने के लिए पहले ही विज्ञापन जारी कर चुका है।
राजद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में तर्क दिया कि चुनाव आयोग अदालत के आदेशों की अवमानना कर रहा है क्योंकि BLOs उन मतदाताओं के दावों को खारिज कर रहे हैं, जिन्होंने निवास प्रमाण के रूप में आधार प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा, “अगर BLO आधार को स्वीकार नहीं करते, तो वे किस तरह का समावेशी अभियान चला रहे हैं?”
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने असम, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी SIR की मांग की और अदालत से अनुरोध किया कि यह प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले से जुड़े अन्य पहलुओं पर अगली सुनवाई आगामी सोमवार को होगी, जिसमें बिहार में चुनाव से पहले नागरिकता प्रमाण की अनिवार्यता संबंधी चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश की वैधता पर भी चर्चा होगी।
यह फैसला उन लाखों मतदाताओं के लिए राहत है जिनके पास नागरिकता से जुड़े दस्तावेज भले न हों, परंतु आधार कार्ड के माध्यम से वे अपनी पहचान सिद्ध कर सकते हैं। यह न्यायालय का एक बड़ा हस्तक्षेप है जो चुनावी समावेशन और पारदर्शिता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।