
कांग्रेस के पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने भाजपा में जाने की अटकलों को खारिज तो किया ही, साथ में इसके पीछे साजिश का अंदेशा भी जता दिया। आहत प्रीतम सिंह ने किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन तल्खी के साथ कहा कि शिखंडी को आगे कर प्रीतम सिंह की हत्या नहीं की जा सकती।सोमवार को प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में पत्रकारों से वार्ता में प्रीतम सिंह ने उनके कांग्रेस छोड़ने की अटकलों को लेकर तीखे तेवर दिखाए। उन्होंने कहा कि पहले सतपाल महाराज और फिर 2016 में विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल समेत कांग्रेस के कई साथियों के जाने से पार्टी को बड़ी क्षति हुई। इससे पार्टी को 2017 में हार का सामना करना पड़ा था।
कांग्रेस से पारिवारिक जुड़ाव का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि वह आसानी से कांग्रेस से जाने वाले नहीं है। उन्होंने पोर्टल मीडिया के एक वर्ग को सीधे निशाने पर लेते हुए कहा कि उनके खिलाफ लगातार भ्रामक प्रचार किया जा रहा है।प्रीतम ने विधानसभा चुनाव में मिली हार के लिए गुटबाजी में उनका नाम भी लिए जाने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन केसी वेणुगोपाल और प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव पर हमला बोला।इसे राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने छवि खराब करने की कोशिश करार देते हुए उन्होंने कहा कि गुटबाजी में वह शामिल हैं तो इसकी जांच कराई जानी चाहिए। पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट के टिकट वितरण पर उठाए गए सवालों का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि हाईकमान को इसका संज्ञान लेना चाहिए।
उन्होंने किसी नेता का नाम लिए बगैर कहा कि पार्टी के विरोध में या गुटबाजी को लेकर इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय नेता जिम्मेदार हैं तो उन्हें निशाने पर लिया जाना चाहिए। उनके बजाय किसी और को निशाना बनाना ठीक नहीं है।प्रीतम ने केंद्रीय नेताओं को निशाने पर लेकर हार के कारणों की समीक्षा के तौर-तरीके पर ही सवाल उठा दिए। दरअसल, इसे ही आधार बनाकर प्रीतम सिंह की नेता प्रतिपक्ष पद पर दावेदारी खारिज की गई। उनकी नाराजगी का बड़ा कारण भी यही माना जा रहा है।
कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष पदों पर नियुक्तियों में गढ़वाल क्षेत्र की उपेक्षा को उन्होंने यह कहकर खारिज किया कि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में सिर्फ दो ही मंडल कुमाऊं एवं गढ़वाल हैं। वह राजनीति में क्षेत्रीयता के पोषक नहीं हैं। पद योग्यता को देखकर दिए जाने चाहिए।उन्होंने 2002 में मुख्यमंत्री एनडी तिवारी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हरीश रावत, विधानसभा अध्यक्ष यशपाल आर्य और सरकार में दूसरे स्थान पर बतौर कैबिनेट मंत्री इंदिरा हृदयेश थीं। तब क्षेत्र की उपेक्षा का मुद्दा नहीं उठा था।इस अवसर पर उपस्थित प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने भी प्रीतम सिंह की कांग्रेस हाईकमान से गुटबाजी के मामले की जांच की मांग का समर्थन किया।उन्होंने कहा कि प्रीतम सिंह की चिंता वाजिब है। हाईकमान के समक्ष उन्होंने यह बात रखी है। जिन्होंने आरोप लगाए, उस आधार पर फैसला होता है तो जिस पर आरोप लगाया गया है, उसका पक्ष भी जानने में बुराई नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रीतम सिंह और हाईकमान की बैठक होगी।